शहर को दो भागों में बांटती ये रेललाइन 5.5 लाख लोगों को रोज 10 घंटे बंधक रखती है; सरकारें बदलती रहीं, समाधान नहीं हुआ

ये मुद्दा बीकानेर के लिए नया नहीं 128 साल पुराना है। हां, दर्द जरूर रोज नया हो जाता है। रोज जब शहर के व्यस्ततम इलाके में दो बंद रेल फाटकों के चलते कभी बच्चे परीक्षा देने नहीं पहुंच पाते, कभी कर्मचारी दफ्तर समय पर नहीं पहुंच पाते और कभी-कभी तो एंबुलेंस भी फंसी रह जाती है।


शहर को दो हिस्सों में बांटती रेलवे लाइन पर कोटगेट और सांखला फाटक से निजात दिलाने के लिए 1991 से आंदोलन चल रहा है। इन 29 सालों में कई बार मुद्दा उठा, सरकारों के कानों तक भी पहुंचा। मगर समाधान राजनीति में उलझकर रह गया। 


कांग्रेस चाहती है रेल बायपास, भाजपा कहती है एलिवेटेड रोड बनाओ; करता कोई कुछ नहीं है



  • 1992 में भाजपा सरकार ने रेल बायपास मंजूरी किया। बाद की कांग्रेस सरकार ने 60 करोड़ दिए। 

  • मगर दोबारा भाजपा सरकार आई तो एलिवेटेड रोड का प्लान बनाया। 

  • कांग्रेस सत्ता में आई...अंडरब्रिज का प्लान बना, खारिज हुआ। 

  • फिर भाजपा आई तो दोबारा एलिवेटेड रोड का मॉडल बना। इसे राजीव गांधी मार्ग से जोड़ने का प्लान हटा तो व्यापारी हाईकोर्ट चले गए।

  • 75 बार तक ये दोनों फाटक 24 घंटे में बंद होते हैं...हर बार 8 से 12 मिनट के लिए

  • 60 करोड़ रेलवे को बायपास के लिए दिए गए थे...मगर बाद में वापस ले लिए गए


बीकानेर से दो मंत्री हैं, एक केंद्र तो दूसरा राज्य में, पहले वो एकमत हों, समाधान निकल आएगा
उत्तर-पश्चिम रेलवे के जीएम आनंद प्रकाश ने कहा कि हम तो समाधान के लिए तैयार हैं, मगर पहले जनप्रतिनिधि तो एकमत हों। बीकानेर से दो मंत्री हैं, एक स्टेट में और दूसरा सेंटर में। एक कहते हैं आरयूबी बनाओ, दूसरे कहते हैं बायपास ही बनेगा। जिस दिन दोनों एकमत होंगे, समाधान निकल आएगा। 


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